मैसूर मेडिकल कॉलेज एवं अनुसंधान संस्थान का शताब्दी समारोह (लिखित)up)
मैसूर शहर को महलों का शहर कहा जाता है। यह वाडियार राजवंश के कुलीन राजा कृष्णराज वाडियार चतुर्थ (1902-1940) के कुशल नियंत्रण में एक आदर्श राज्य था। महात्मा गांधीजी ने उन्हें राजवृषि कहा है। उन्होंने राज्य को कल्याणकारी राज्य के रूप में सुधारने के लिए हर संभव प्रयास किया। उन्होंने स्कूली शिक्षा और स्वास्थ्य कल्याण कार्यक्रम आयोजित किए। यहां तक कि वे अंग्रेजों के नियंत्रण में थे, उन्होंने स्कूलों में कन्नड़ स्थापित करने का साहस किया। मैसूर मेडिकल कॉलेज कृष्णराज वाडियार के दिमाग की उपज है।
महामहिम श्री कृष्णराज वाडियार ने 1924 में मैसूर मेडिकल कॉलेज की स्थापना की थी। इससे पहले मैसूर राज्य में कोई मेडिकल शिक्षा नहीं थी। मेडिकल शिक्षा की अवधारणा 1881 में शुरू हुई थी। चयनित छात्रों को छात्रवृत्ति दी जाती थी और उन्हें कॉलेजों में प्रशिक्षण के लिए बॉम्बे और मद्रास जैसी जगहों पर भेजा जाता था। वापस आने पर उन्होंने अस्पताल सहायक के रूप में काम किया।
1924 में मैसूर मेडिकल स्कूल को अपग्रेड किया गया और इसे मैसूर मेडिकल कॉलेज कहा गया। यह कॉलेज मैसूर विश्वविद्यालय से संबद्ध था और विश्वविद्यालय प्रशिक्षित मेडिकल छात्रों को डिग्री प्रदान करता था।
मैसूर मेडिकल कॉलेज राज्य में पहला और उस समय भारत में सातवाँ था। श्री कृष्णराज वाडियार के अनुरोध और पहल पर कॉलेज को 1930 में बैंगलोर से मैसूर स्थानांतरित कर दिया गया था।
इसकी आधारशिला 1930 में कृष्णराज वाडियार ने रखी थी और मुख्य भवन का निर्माण मैसूर के प्रसिद्ध ठेकेदार बोरैया, बसवैया और उनके बेटे ने करवाया था। 1940 में इसका और विस्तार किया गया।
मैसूर मेडिकल कॉलेज 1930 से चिकित्सा के क्षेत्र में उत्कृष्ट सेवाएं प्रदान कर रहा है और यह गौरव जारी है।
मैसूर मेडिकल कॉलेज ने 100 साल की लंबी यात्रा तय की है। इस लंबी यात्रा के दौरान इस संस्थान से कई बेहतरीन व्यक्तित्व और शिक्षण कर्मचारी निकले और उत्कृष्टता लेकर आए। अब तक इस संस्थान से निकले स्नातक और स्नातकोत्तर भारत के कोने-कोने और दुनिया भर में अपनी सेवाएं दे रहे हैं।
मैसूर मेडिकल कॉलेज 2024 में अपना शताब्दी समारोह मनाएगा। संस्थान सदैव पूरे मन से मानवता की सेवा करता है।