पूज्य श्री राम चन्द्र जी फतेहगढ़ उ.प्र. के एक महान संत और आध्यात्मिक शिक्षक थे जो 1873 से 1931 तक जीवित रहे। उन्हें अक्सर स्नेह और भक्ति के साथ लालाजी के नाम से जाना जाता है। अपने जीवनकाल के दौरान, उन्हें कई आध्यात्मिक और धार्मिक समूहों द्वारा सम्मानित किया गया था। उन्होंने संस्कृतियों और आध्यात्मिक प्रणालियों से आगे बढ़कर, आधुनिक युग की आध्यात्मिकता में आगे बढ़ने के लिए एक परिवर्तनकारी मार्ग प्रदान किया। उनके वैज्ञानिक दृष्टिकोण ने उन्हें आधुनिक युग के लिए योग की प्रणाली को पुनःसंरचित करने के लिए प्रेरित किया।
लालाजी ने मानवीय चेतना को परिवर्तित करने के लिए, एक विधि के रुप में ट्रांसमिशन या प्राणाहुति की प्राचीन योग कला को पुनर्जीवित किया, और सहज मार्ग राजयोग के आदि गुरु के रुप में इसकी उपयोगिता को नई ऊंचाइयों तक विकसित किया। उन्होंने अपने सहयोगियों को आध्यात्मिक प्रशिक्षकों के रूप में प्रशिक्षित और तैयार किया, विशेष रूप से उनके उत्तराधिकारी, शाहजहाँपुर के पूज्य श्री राम चंद्र जी, जिन्हें दुनिया बाबूजी के नाम से जानती है। यह दोनों, साथ मिलकर आध्यात्मिकता को एक नए युग में लेकर आये और उन सभी के लिए दरवाज़े खोल दिए जो एक ही जीवनकाल में मानव अस्तित्व के उच्चतम लक्ष्य तक पहुचंना चाहते हैं।
इस बसंत ऋतु में, श्रीराम चंद्र मिशन कान्हा शांति वनम में पूज्य लालाजी की 150 वीं जयंती मना रहा है, और यह सिक्का 2 फरवरी, 2023 को इस शुभ अवसर के उपलक्ष्य में भारत सरकार द्वारा जारी किया जा रहा है।