राष्ट्रपति को 31 तोपों की सलामी के साथ 26 जनवरी, 1950 को 10:30 बजे से कुछ समय पहले भारतीय गणतंत्र के जन्म की घोषणा की गई। ब्रिटिश शासन के अंत के 894 दिन के बाद देश को संप्रभुत्व का दर्जा प्राप्त हुआ। यह समारोह गवर्नमेंट हाउस (अब राष्ट्रपति भवन) के शानदार ढंग से सजाए गए दरबार हॉल में आयोजित किया गया था और इसमें इंडोनेशियाई गणराज्य के राष्ट्रपति डॉ सुकर्णो सहित लगभग 500 प्रमुख गणमान्य व्यक्तियों ने भाग लिया था। यह न्याय, स्वतंत्रता, समानता और एकता के सिद्धांतों के आधार पर एक नए गणराज्य की शुरुआत थी।
ब्रिटिश उपनिवेश से एक संप्रभु लोकतांत्रिक गणराज्य में भारत का संक्रमण वास्तव में एक लंबी यात्रा थी। 200 वर्षों से चल रहे ब्रिटिश शासन से देश को आजाद कराने के लिए हजारों लोगों ने अपने प्राणों की आहुति दी। 26 जनवरी, 1950 के महत्वपूर्ण दिन सेवानिवृत्त हो रहे गवर्नर जनरल श्री सी. राजगोपालाचारी ने "इंडिया, जो कि भारत है" गणराज्य की उद्घोषणा पढ़कर सुनाई। संविधान लागू हुआ और डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने देश के पहले राष्ट्रपति के रूप में शपथ ली।
इसके बाद राष्ट्रपति औपचारिक अभियान पर राष्ट्रपति भवन से इविन स्टेडियम (अब मेजर ध्यानचंद स्टेडियम) गए। मार्ग के किनारे हजारों लोग राष्ट्रपति का स्वागत करने के लिए खड़े थे। राष्ट्रपति ने हाथ जोड़कर अभिवादन स्वीकार किया । स्टेडियम में राष्ट्रपति ने भारत का ध्वज फहराया। औपचारिक परेड में भाग लेने के लिए सशस्त्र बलों और लिस बलों के लगभग तीन हजार अधिकारी और पुरुष स्टेडियम में इकट्ठे हुए।
सेना की जीप में खड़े होकर राष्ट्रपति ने परेड कमांडर ब्रिगेडियर जेएस ढिल्लों के साथ परेड का निरीक्षण किया। इसके बाद राष्ट्रपति मंच पर गए और सेना की सलामी ली। तीनों सेनाओं का प्रतिनिधित्व करने वाले सात सामूहिक बैंड ने संगीत बजाया। कार्यक्रम की सबसे प्रभावशाली वस्तुओं में राष्ट्रगान और राष्ट्रपति को बंदूकों की सलामी के साथ 'फ्यू-डे-जोई' (खुशी की फायरिंग) शामिल थी। लगभग 15000 लोग इस शानदार पहली गणतंत्र दिवस परेड के चश्मदीद गवाह थे, जबकि देश भर में और विदेशों में लाखों लोगों ने गणतंत्र दिवस परेड का उद्घाटन भी मनाया, जबकि देश भर में और विदेशों में लाखों लोगों ने गणतंत्र के उद्घाटन का जश्न मनाया। तब से गणतंत्र दिवस समारोह प्रत्येक वर्ष 26 जनवरी को आयोजित एक राष्ट्रीय त्योहार बन गया है।